पारनेर में हिंदीतर भाषी हिंदी नवलेखन शिविर का भव्य शुभारंभ
हिंदी की नई लहर अब सीमाओं से परे फैल रही है। भारत के विभिन्न हिस्सों से आए हिंदीतर भाषी रचनाकार, शोधकर्ता और विद्यार्थी जब एक मंच पर एकत्र होते हैं, तो वहाँ भाषा केवल माध्यम नहीं रह जाती, वह संवाद, सौहार्द और सृजन की एक ध्वनि बन जाती है। ऐसा ही दृश्य देखने को मिला महाराष्ट्र राज्य के अहिल्यानगर (अहमदनगर) जिले के पारनेर स्थित न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज में, जहाँ हिंदीतर भाषी हिंदी नवलेखन शिविर का भव्य शुभारंभ हुआ।
यह आठ दिवसीय शिविर केंद्रीय हिंदी निदेशालय, शिक्षा मंत्रालय, उच्चतर शिक्षा विभाग, भारत सरकार तथा कॉलेज के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया है। इसका उद्देश्य हिंदीतर क्षेत्रों में हिंदी लेखन को बढ़ावा देना, नवलेखकों को सृजनात्मक अभिव्यक्ति के मंच से जोड़ना और भाषायी विविधता में एकता की भावना को प्रोत्साहित करना है।
उद्घाटन समारोह की झलकियाँ
शिविर के उद्घाटन समारोह का संचालन हिंदी विभागाध्यक्ष एवं शिविर समन्वयक प्रो. डॉ. विजय कुमार राऊत तथा प्रो. आर्डे सुभद्रा ने संयुक्त रूप से किया। कार्यक्रम की शुरुआत पारंपरिक स्वागत एवं छात्रा प्रतीक्षा लोनकर द्वारा प्रस्तुत मधुर स्वागत गीत से हुई, जिसने वातावरण को भावमय बना दिया।
इस गरिमामय समारोह की अध्यक्षता कॉलेज के प्राचार्य डॉ. रंगनाथ आहेर ने की। विशेष अतिथि के रूप में जिला मराठा विद्या प्रसारक समाज के सदस्य डॉ. अर्जुनराव पोकले तथा केंद्रीय हिंदी निदेशालय की प्रभारी एवं शिविर संयोजक डॉ. शालिनी राजवंशी उपस्थित रहीं, जिनकी उपस्थिति ने कार्यक्रम को विशेष गरिमा प्रदान की।
देशभर के विद्वानों की सहभागिता
शिविर में जम्मू से डॉ. भारत भूषण शर्मा, मध्यप्रदेश से डॉ. विनोद विश्वकर्मा, नई दिल्ली से डॉ. रमेश तिवारी, पुणे से डॉ. सुनील केशव देवधर एवं डॉ. अहमद मोहम्मद शेख, कॉलेज के उप प्राचार्य डॉ. तुकाराम थोपटे सहित अनेक प्रतिष्ठित विद्वान उपस्थित रहे।
असम, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश आदि राज्यों से आए शोधार्थियों, शिक्षक-शिक्षिकाओं एवं विद्यार्थियों की सक्रिय सहभागिता ने इस शिविर को एक राष्ट्रीय साहित्यिक संगम में बदल दिया।
कार्यक्रम के अंत में प्रो. प्रतीक्षा तनपुरे ने सभी अतिथियों, आयोजकों एवं प्रतिभागियों के प्रति आभार व्यक्त किया और उद्घाटन समारोह की सफलता के लिए सभी को हार्दिक धन्यवाद ज्ञापित किया।
यह शिविर न केवल भाषा के माध्यम से सांस्कृतिक संवाद का अवसर प्रदान कर रहा है, बल्कि भावी लेखकों को एक नई दृष्टि, ऊर्जा और उद्देश्य दे रहा है। पारनेर की यह पहल हिंदी के प्रति समर्पण, नवाचार और समरसता का उदाहरण है—जहाँ हर भाषायी भिन्नता मिलकर हिंदी की अखंडता में समाहित हो जाती है।
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