जुबिन गार्ग
झर्ना मिश्र भट्टराई
पाइन के पेड़ों की छाँव तले,
जीवन की पहली भोर में
गीतों के सपनों के साथ आए थे तुम, जुबिन —
और संगीत को एक नया रूप दिया।
कभी कीबोर्ड, कभी गिटार, कभी तबले की थाप,
हर जगह तुम्हारे सुर के साथी रहे।
गायक, संगीतकार, गीतकार, निर्देशक —
वाद्ययंत्रों के सच्चे जादूगर,
तुमने संगीत को दी अपनी ही पहचान।
"अनामिका" से शुरू हुई तुम्हारी अनवरत यात्रा,
आधुनिक असमिया संगीत को नई दिशा मिली।
सुरों से दिल जीते,
और हर दिल में अपना घर बना लिया।
बंगला फ़िल्म "शूधु " से पाया सम्मान,
सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक का पुरस्कार,
फिर 2014 का रेनेसाँ असम पुरस्कार,
जो केवल तुम्हारा नहीं,
हम सब असमवासियों का गौरव बना।
"या अली" की धुन ने पूरी दुनिया को मोहित किया।
असमिया, हिन्दी, बांग्ला, नेपाली —
हर भाषा में तुम्हें मिला मान–सम्मान।
असम का हार्टथ्रॉब,
"लुइत की आवाज़",
हमिंग सम्राट, कलाकारों का रत्न —
तुम सिर्फ़ महान गायक नहीं,
हमारे दिल की धड़कन थे।
19 सितम्बर की वह अकाल घड़ी...
अचानक अंधकार ने आकाश को ढक लिया,
संगीत जगत का एक तारा बुझ गया,
और सागर भी मौन हो गया।
आज धरती–आकाश शोक में डूबे हैं,
माँ की गोद जैसे खाली हो गई हो,
पहाड़, जंगल, नदियाँ सब मौन हैं।
पर यह अंत नहीं है तुम्हारा, जुबिन!
तुम्हारे नाम से आज पूरा राष्ट्र नतमस्तक है।
सुरों का जादू, गीतों की मिठास
युगों–युगों तक हमें जीवित रखेगी।
तुम अमर हो, जुबिन —
हमारे दिलों में, हमारी रूहों में,
संगीत की हर धड़कन में।
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